उत्तर प्रदेश से लगातार बड़ी खबरें आ रही हैं। इस वक्त राजनीतिक गलियारों में योगी आदित्यनाथ की चर्चा सबसे ज्यादा हो रही है। विदित हो कि मोहन भागवत और योगी आदित्यनाथ की एक मुलाकात गोरखपुर में हर साल होती थी, जब भी गोरखपुर में संघ का शिविर लगता था। इस बार भी यह मुलाकात होनी थी, लेकिन इस बार इसका महत्व और बढ़ गया था क्योंकि उत्तर प्रदेश में बीजेपी को लोकसभा चुनाव में बड़ी हार मिली थी। इस साल दोनों की आधे-आधे घंटे की दो सीक्रेट मीटिंग्स हुईं। राजनीति में 1 घंटे की मुलाकात बड़ी मानी जाती है।
इस चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा, जिसमें वह 272 सीटों से पीछे रह गई। विशेष रूप से बनारस के आसपास के जिलों में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा, जबकि योगी आदित्यनाथ के गृह जिला गोरखपुर और आसपास की सीटों पर बीजेपी ने अच्छी जीत दर्ज की। इस वजह से यह कहा जा रहा है कि अगर योगी आदित्यनाथ नहीं होते तो बीजेपी को उत्तर प्रदेश में 33 सीटें भी नहीं मिलतीं।
इस बीच, योगी आदित्यनाथ को हटाने के प्रयास किए जा रहे हैं, जिनमें विदेशी फंडिंग भी शामिल है। अगर बीजेपी खुद ही योगी आदित्यनाथ के खिलाफ हो जाती है, तो उसे हराना आसान हो जाएगा। इस संदर्भ में, योगी आदित्यनाथ और मोहन भागवत की मुलाकात बहुत महत्वपूर्ण मानी जा रही है। इस गोपनीय मुलाकात को लेकर कई अटकलें लगाई जा रही हैं, जिसमें योगी आदित्यनाथ को बड़े स्तर पर प्रोजेक्ट करने की योजना शामिल है।
विपक्षी खेमा भी योगी आदित्यनाथ की तारीफ कर रहा है। मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी ने कहा कि अगर योगी जी नहीं होते, तो बीजेपी हार जाती और इंडिया गठबंधन की सरकार बन जाती। प्रशांत किशोर ने भी कहा कि अगर योगी जी को हटाया गया, तो बीजेपी की स्थिति बहुत खराब हो जाएगी।
सेकुलर मीडिया और विपक्षी दलों की यह ख्वाहिश है कि योगी आदित्यनाथ और बीजेपी-संघ के बीच दरार पैदा हो जाए। अगर ऐसा हुआ और योगी आदित्यनाथ को हटाया गया, तो यह विपक्ष के लिए बड़ी जीत होगी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने योगी आदित्यनाथ को कुर्सी पर बनाए रखने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।
प्रशांत किशोर ने भी यह कहा है कि बीजेपी की सेकंड रन लीडरशिप में योगी आदित्यनाथ सबसे प्रॉमिनेंट चेहरा हैं और उनकी हैंडलिंग एक बड़ा चुनौतीपूर्ण काम होगा। उत्तर प्रदेश की राजनीतिक स्थिति को अगले तीन से पांच सालों में बहुत करीब से देखना होगा।
संघ और बीजेपी के अंदर चल रही इस खींचतान को देखकर यह स्पष्ट है कि योगी आदित्यनाथ को हटाने की कोशिशें जारी हैं, लेकिन यह काम इतना आसान नहीं होगा।